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हृदय के टुकड़े

मेरे हृदय के इतने टुकड़े हुए !!       फिर जोड़ न पाया    प्रेमिका नहीं पत्नी कहा     हम साथ जिएंगे वादा किया !!         अब कैसे दे दूँ ?    अपना दिल किसी ओर को       किसी लड़की को देख     मेरा दिल नहीं धड़कता   एक मौन उदासी का छा जाता है  मुझे नहीं पता सुन्दरता का रहस्य      मुझे महसुस नहीं होता !!  तुमसे सुन्दर, सुशील देखना भी नहीं चाहता              अगर कोई है !!          उसे देखने से पहले      मेरी आँखें अंधी हो जाए !!  मैं बंद आँखों से जीवनभर प्रतीक्षा करता रहूँगा        किसी पर्वत की तरह    जब तुम गुजरो रास्ते में कभी          दुर से निहारता रहूँ !!  ©नवीन किशोर महतो     17 /09/2020

मौन का खिड़की

तुमने एक दिन कहा था !! पुजा करते रहना,  दुआ माँगते रहना  !!  हम जरूर मिलेंगे, भगवान हमारे साथ हैं  !!  प्रेम की धागा में हम दोनों साथ बंधे थे  मैं आज बँधा अकेला हुँ !!  वो धागा कितनी मजबूत  थी !!  हम बाँध चले  ईश्वर  थे  !!  मैं आज बँधा अकेला हुँ !!  दुआओं ने मेरी एक न सुनी  रोया भी मैंने गिड़गिड़ाया भी  क्या हो सकता है ?  ईश्वर इतना कठोर !!  तो प्रेम की परिभाषा क्या होगी  !!  अब कहूँ,  ईश्वर नहीं होते,  भगवान नहीं होते  !!  इसमें बुरा क्या है  !!  हाँ, अब मैं नास्तिक हुँ  !!  मैं मंदिर नहीं जाता,  टूटते तारे नहीं देखता  बादलों सा उमड़ते  दुआओं को दबा देना चाहता हुँ !!  अपने ही मन में   !!  आँखों से बहा देना  चाहता हुँ,  किसी सूने रेगिस्तान में पानी  मैं मौन खिड़की से देख रहा हुँ  !!  एक कबूतर के  दो जोड़े  चोंच से चोंच मिलाते !!  गले से गले मिलाते !!  अचानक डाली हिला पेड़ का  दोनों उड़े आकाश में    मैंने बंद किया !!  धीरे से खिड़की मौन का  हँसने लगा देख धोखा दिल का !!  ©नवीन किशोर महतो   11/09/2020

अधुरे शब्द

अतीत में कितना अजीब होता है, वो पल जब दोनों साथ जिए जाते हैं, तब अगर बेहद खुशनुमा हो अगर याद बन जाए तो अक्सर तकलीफ दे जाती है l वहीं बीते वक्त में की गई नादानीयाँ मुस्कराने की वज़ह बन जाती है l पर प्रेम में बिछड़ने वालों के लिए अतीत से बुरी शायद कोई चीज़ नहीं है l अक्सर वो यही चाहता है, काश कुछ ऐसा हो जाए जिनसे वो अपनी यादों में से उन लम्हों को निकाल दे, पर कुछ लोगों के लिए वही यादें जीने की वज़ह बन जाती है l उसने भी अपनी यादों को जीने की वज़ह बना लिया था l अतीत कभी इंसान का पीछा नहीं छोड़ता खासकर तब जब चोट गहरी लगी हो l अक्सर ऐसा होता है, जब हम किसी के प्यार की कहानी सुनते हैं,चाहे वो फिल्म, कहानी में ही क्यों न हो l कोई एक ऐसा किरदार अपनी जिंदगी में छाप छोड़ जाता है l वो इंसान उस वक्त याद आता है l मेरे लिए ये महज कहानी है,  लेकिन इस कहानी में तुम्हारे लिए अनजान शब्द का इस्तेमाल करना बेमानी होगा l तुम ही कहो जिस्म की बात मैं नहीं करता ये ओछी बात होगी, मैं ये कभी चाहता भी नहीं था, हमारा कोई जिस्मानी सम्बंध हो ll तुम तो आत्मा में समा चुकी हो, मैं तुम्हें अनजान नहीं कह सकता हुँ ll ले

कोरसोंग

हमलोग हैं पश्चिम बंगाल के बहुत ही सुंदर स्थान पर प्रकृति के गोद मेंं बसा छोटा सा जगह कोरसोंग का डॉल हिल स्टेशन !!  ये भारत का सबसे डरावनी जगह के रूप में जाना जाता है l कहानी अपने आप नहीं बनती है, हर कहानी में एक किरदार छिपा होता है !!  पर्दे के पीछे या फिर सामने खड़ा होता है !! हम पहचान नहीं पाते, उस रात बारिश बहुत तेज हो रही थी l जैसे अभी आसमान फटकर जमीन पर गिर जाएगा !!  बिजली की तेज चमक किसी तीव्र ज्वालामुखी की तरह अचानक चमक उठता, फिर शांत हो जा रहा था !!  मैंने कहा था,             आज निकलना सही नहीं है !!  अब देखो इस जंगल के विरान से रेस्ट हाउस में रात बिताना पड़ रहा है l यहाँ से कितना दुर होगा सिलीगुड़ी गूगल मैप में देखो न फालतु इस जगह पर ठहरें हैं जैसा लग रहा है l अबे, राकेश यहाँ से एक घंटा का रास्ता है, चलो निकलते हैं !!  मैंने सुना है, कोरसोंग भारत का सबसे भुतहा रोड है, यहाँ पर एक सिर कटा बच्चा रात में निकलता है !  बहुत सारे लोग मारे भी गए हैं l अबे तुम तो बेकार टेंशन लेते हो !!  राकेश झुंझला कर बोलने लगा......  इतने में विकास यू ट्यूब में कोरसोंग पर हुए घटन

बसेरा

बंद घरों की खिड़कियाँ    आवाज करती है !!      कोई था इस घर में बसेरा  उड़ा कर गया तिनका तिनका       ये कहती है !! बंद घरों की खिड़कियाँ  आवाज करती है !!  सुने कौन घरों की सिसकियाँ हवाओं ने अपना रुख बदला    दीवारों ने अपनी कान !!   पतझड़ है रिश्तों के मौसम में    हादसे दिलों में हुए    ठिकाने लोग बदले !!  अब मकान तेरा पुराना हुआ    फिर से नया बनाना होगा !!        मिट्टी के गारे नहीं    सोने का परत चढ़ाना होगा !!     होगा एक नया सबेरा     होगा एक नया बसेरा     ये घर, तेरा घर न रहा  अब किसी और का मकान है     उसे ये बतलाना होगा  !!   खिड़कियाँ बदल दी गई है अब अंदर से बाहर दिखता है  लेकिन बाहर से अंदर नहीं दिखता !!  ऐ अजनबी,    ये किसी भी नजर से तेरा घर नहीं दिखता !!  © नवीन किशोर महतो                  

जंगली लोग

जंगली मामूली लोग हैं आग और पानी जैसा  मगर सोचो तो  इतिहास के पहियों को आगे की ओर ठेलने वाले हैं  इतिहास की क़िताबों में इनका ज़िक्र नहीं है  सोचो तो कितना अजीब है जो जानवरों का रक्षा करते हैं !!  जंगलों को बचाया करते हैं !!    अक्सर शहरी लोग  जंगली कहकर पुकारते हैं !!  "जंगली " शब्द का अर्थ व्यंग्यात्मक है !!  इनकी भाषा समझ से परे है  जिसका व्याकरण, शब्दकोश   लिखा नहीं गया  शिक्षित लोगों से !!  तुमसे चिढ़ है !  क्योंकि तुम्हारे वेशभूषा में  तस्कर जंगल आया करते हैं !! ©नवीन किशोर महतो  फरवरी 2/2/2020

दहेज की आग

दाहेज दहेज की आग   _________________________________________ नारी रोज जलती है, दहेज की आग में,   समाज की ऊंची चारदीवारी के भीतर  गाँव से शहर तक पाट दी गयी है  संस्कारों का ईंट, खिड़की खुली है साँस लेने भर  तुम्हारे संस्कारों के डर से  लगा देती है पर्दा !!  घावों से छलनी शरीर पर  बाँध लेती है, आँखों पर पट्टियां  कितनी अजीब बात है !!  आग में झुलसे शरीर को  फेंक दिए जाते श्मशान के अंधेरों में  सारी सच्चाईयाँ  गड़ जाती है पैर के तलवों पर  नारी रोज जलती है !  दहेज की आग पर !!  © नवीन किशोर महतो      18 फरवरी 2020

गुल्लक

गुल्लक  __________________________________________ छोटा था तो क्या हुआ सारे सपने कैद थे !!  मिट्टी के गुल्लक में  चावानी आठानी के पैसों में  वो बच्चा रोज गिनता था !!  उसके भरने के दिन को  कान से सटाकर सुनता था !!  क्षण छन की आवाज  उसके सारे सपने थिरकने लगते थे !!  गुल्लक के छोटे दरवाजे से निकलता था  दुध, गुड़िया और कपड़े  उसकी सोयी बहन के लिए !!  जिसे पानी पीला कर अक्सर सुला देता था  माँ के काम में जाने के बाद !!  फिर निकालता था    छोटे दरवाजे से  चावल, दाल और रोटियाँ  अपने माता पिता के लिए !!  अपने लिए एक कुदाल   एक अनजान शहर वो बच्चा रोज गिनता था !!    उसके भरने के दिन  !  ©नवीन किशोर महतो      14 मई 2020

पथिक

पथिक  ______________________________________ लौट आना गाँव  सुरक्षित होकर निरोग लौट आना  पत्नी पथ पखारे देखती है  राह लौटने का !!  छलकते आँसुओं की असहनीय पीड़ा  पोंछ लेती है साड़ी की चांवर से  अदहन देर से देती है, भात गिला हो जाता !!  लेकिन फेंकती नहीं है  तुम लौट आना !! जैसे लौट आता है  पंछी तूफानों से लड़कर  शाम होने तक अपना घोंसला !!  तुम भी लौट आना  करोना से बचकर घर अपना !!  तुम लौट आना  कुछ बैठे हैं  समाज के पहरेदार  जिनसे गाँव की बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं !!  गाँव के रक्षा की बात करते हैं !!  तुम देखोगे गाँव की तानाशाही  नलकूप में ताला लटका होगा !!  गाँव का रास्ता बंद मिलेगा  जो रोक लेगा राह तुम्हारी  उस सन्नाटे के गहरेपन में !!  अगर थक गए होगे !!  चलते चलते आराम कर लेना !!     गाँव लौट आना !!  © नवीन किशोर महतो         22 मार्च 2020           

डोर

डोर  _________________________________________   वादों का  डोर टूट गया !! अब निहारता हुँ आसमाँ पर तेरे काले वादे बादल बन उड़ते हैं, बरसने को !!  सुखी बंजर जमीन पर  फिर कोई वादा होगा ??  झूठा वादा होगा ??  सोचता हुँ ?? ऐसे हरियाली के वादे  अनगिनत वादे रोज टूटते होंगे !!.  पृथ्वी के हर कोने पर  और ऐसे ही निहारता होगा !!  आसमाँ को पीड़ित इंसान  नास्तिक बनकर  ईश्वर को नकार कर !!  धोखा देने सीख जाता होगा !! इस तरह सच्चे प्रेमी  दुनिया में खत्म हो रहे !!  गौरेया की तरह  एक दिन लुप्त प्राणी के श्रेणी में  होंगे सच्चे प्रेमी !!  टाँगा जाएगा फोटो फ्रेम  किसी अजायबघर में !!  इंसान का अगली पीढ़ी  टिकट लेकर देखने आएगा !!  प्रेमियों का इतिहास   इनकी प्रमुख गलतियाँ !!  © नवीन किशोर महतो        29 फरवरी 208         

एक फौजी

एक फौजी  __________________________________________ एक फौजी लौट रहा है चितकबरे पोशाक में  सालों बाद गाँव फिर से यादों के बड़े बैग में है !!  बुढ़ी माँ की एक पुरानी तस्वीर पिता का हल ओर जुआंट भूरा ओर एक काला बैल  सोंधी मिट्टी की खुशबु !!  बंद है घर का कुआं प्लास्टिक के बोतल में ट्रेन की छुक छुक आवाज !!  सहसा याद दिलाता गाँव का खेल मुस्कराते निहार रहा अपना बैग एक फौजी लौट रहा है !!  चितकबरे पोशाक में  सालों बाद अपने गाँव फिर से  गोली जो लगी थी पैर में   वो ज़ख्म भरा नहीं है !!  सोचता है कैसे छिपाना है  हर झूठ जो माँ पकड़ लेती है !!  अगर लंगड़ाते देखती है   तो उसे क्या बताना है ?  गिर गया था, नहीं  चोट लगी थी, नहीं नहीं  मोच आ गया था !!  इसी आपा धापी भीड़ में  सोचते सोचते  एक फौजी लौट रहा है !!  चितकबरे पोशाक में  सालों बाद अपने गाँव फिर से !!  © नवीन किशोर महतो   13 मई 2020

कैकटस के फुल

कैक्टश के फुल  __________________________________________  मन की रेत पर  कोई गुजरा अभी अभी  इन्द्रधनुष बना मन के आकाश में  तो दुर तक बनते गए,  स्मृतियों के सुंदर फुल !!  लौटते आंसुओं से डब - डबाए  क़दमों के निशान !!   खिलखिलाती आँखों में  फिर गिली होने लगी है रेत  रेगिस्तान की,  मृगतृष्णा की तलाश में !!  एक प्यासा मुसाफिर  बोया था रंग बिरंगे फुल  सजाये थे कई सपने !!  सुखी रेत ओर तेज धुप में  उगा कैकटश का फुल   तो वो निहारने लगा !!     नुकीले काँटों को    मजे से खाते ऊँठ को    डब डबाये आँखों से !!  © नवीन किशोर महतो         7 मई 2020      राँची ( झारखंड)      

हंसिये का गीत

हंसिये का गीत  ----------------------------------------------------------------- पहाड़ की तलहटी में  पीली धान के खेतों से सर सर सर की आवाज आती है ll गाँव की महिलाएँ गाती हैं ll हंसिये का गीत !!  कभी आँखों ने समझी !!  कभी हाथों ने समझी !!  कभी पैरों ने समझी !!  इसका कठिन नृत्य !!  हवा कैसी बह रही,  धूप कितनी तेज है !!   गाँव की महिलाएँ ध्यान नहीं देती !!  अपने धुन से सजाती  पग पग संगीत भरा  हंसिये के गीत से  खेत का हर कोना  फिर क्या होता  यहीं पर सब हँसती  सब गान होता शेष  हंसिये का गीत !!  सर सर की आवाज !!  © नवीन किशोर महतो      29 जनवरी 2020     राँची  ( झारखंड )   

मनोभाव

शीर्षक - मनोभाव  __________________________________________            क्या हुआ ?      लिखो जो मन में भाव है       कविता तुम नहीं लिखते       कविताएँ तुम्हें लिखती है !!    कविताएँ बहुत चालाक होती हैं            गौर से देखती है !!            वर्षों तलाशती है !!         क्या वो बच्चा तुम हो ?        इतने विचलित क्यों हो          मन के धरातल पर  आंसुओ के भीषण वर्षा में अंकुरित होती है !!      कई सुन्दर, मिठी, कविताएँ         कोयल की कुक सी !!           मयूर के पंख सी !!    कुछ कविताएँ बहुत विषैली          मदार के दूध सी !!    जिससे फोड़ा जा सकता है      ध्रुत, कपटी की आँखें ??    कुछ कविताएँ बारूद से भरी     जिससे तोड़ा जा सकता है         गुलामी का दीवार !!   कुछ कविताएँ वेदना से भरी    जिसे प्रेमी गुनगुना सकता है !!             क्या हुआ ??      लिखो जो मन में भाव है !!  © नवीन किशोर महतो       9 जुलाई 2020     राँची ( झारखंड )                                                   

ताप

तुम गलत हो !!  वहाँ आग लगाओ  जहाँ लोग कच्चे खा रहे !!  अधपका चावल,  धुप में सेंक रहे रोटी !!  पी रहे अपने शरीर का खारा पानी !  मुझे पता है   खारे पानी से प्यास नहीं मिटती !!  लेकिन धरती का आधा पानी खारा है !!   जिसे गरीब, बेबस,  असहाय लोग पीते हैं !!  जिनके पेट पर भौका जाता हज़ारों छुरियाँ     लेकिन ज़िन्दा हैं सदियों से     रहेंगे सदियों तक !!  तुम्हारी आग में कितनी ताप है ??   क्या रोटी पक सकता है ?  अगर हाँ है !!   तो लगा दो आग  सफेद बर्फ से ढंके लोगों पर  जो हिमालय की तरह विशाल होते जा रहे हैं !!  हे भागीरथ,   ढहा दो बर्फ में छिपे कीड़ों को   तुम्हारी ताप से बिलबिलाते मरे      बहा दो एक नयी गंगा !!    लगा दो एक प्रचंड आग !!  ©नवीन किशोर महतो       2 जुलाई 2020       राँची (झारखंड ) 

कलम तेरी तलवार है |

कलम तेरी तलवार है !!  शब्दों की धार तेज कर !!                ये वक्त है, कलमकारों का               शब्द अमृत का प्रवाह कर !!  गहन चिंतन एकाकी मन में  सत्य का साक्षात्कार कर !!                         कलम तेरी तलवार है                       शब्दों की धार तेज कर  !!  जल उठे ज्वाला धधक धधक   तु सिंह सा दहाड़ कर !!                   ग़रल  पुष्प शब्दों का                   रक्त स्याही बनाकर  !!  नर पिशाचों का संहार कर  कलम तेरी तलवार है  !!  शब्दों की धार तेज कर  !! A SECRET MOUNTAIN BOY © Navinkishormahto

सूखे पेड़ नहीं मरते हैं !!

सुखे पेड़ नहीं मरते  !!  बस टूट जाती डालियाँ !!  झड़ जाते पत्ते !!  ज़मीन के अंदर फैली जड़ों में रहती है  !!  जीने की आशा !!  सींच लेता है, जीवन शक्ति  !!  करता  है  बसंत का इंतजार  !!  जन्म लेती हैं, नयी कोपलें !!  खिलते नए फुल  !!  कुछ फुल नहीं महकते  !!  बस एहसास दिलाते  !!  खिले होने का  !!  फिर इंतजार करते झोंके का  !!  सूखे पेड़ नहीं मरते  !!  बस टूट जाती डालियाँ !!  झड़ जाते पत्ते  !!  A SECRET MOUNTAIN BOY   ©Navinkishormahto.blogspot. Com