तुम गलत हो !!
वहाँ आग लगाओ
जहाँ लोग कच्चे खा रहे !!
अधपका चावल,
धुप में सेंक रहे रोटी !!
पी रहे अपने शरीर का खारा पानी !
मुझे पता है
खारे पानी से प्यास नहीं मिटती !!
लेकिन धरती का आधा पानी खारा है !!
जिसे गरीब, बेबस,
असहाय लोग पीते हैं !!
जिनके पेट पर भौका जाता हज़ारों छुरियाँ
लेकिन ज़िन्दा हैं सदियों से
रहेंगे सदियों तक !!
तुम्हारी आग में कितनी ताप है ??
क्या रोटी पक सकता है ?
अगर हाँ है !!
तो लगा दो आग
सफेद बर्फ से ढंके लोगों पर
जो हिमालय की तरह विशाल होते जा रहे हैं !!
हे भागीरथ,
ढहा दो बर्फ में छिपे कीड़ों को
तुम्हारी ताप से बिलबिलाते मरे
बहा दो एक नयी गंगा !!
लगा दो एक प्रचंड आग !!
©नवीन किशोर महतो
2 जुलाई 2020
राँची (झारखंड )
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