कैक्टश के फुल
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मन की रेत पर
कोई गुजरा अभी अभी
इन्द्रधनुष बना मन के आकाश में
तो दुर तक बनते गए,
स्मृतियों के सुंदर फुल !!
लौटते आंसुओं से डब - डबाए
क़दमों के निशान !!
खिलखिलाती आँखों में
फिर गिली होने लगी है रेत
रेगिस्तान की,
मृगतृष्णा की तलाश में !!
एक प्यासा मुसाफिर
बोया था रंग बिरंगे फुल
सजाये थे कई सपने !!
सुखी रेत ओर तेज धुप में
उगा कैकटश का फुल
तो वो निहारने लगा !!
नुकीले काँटों को
मजे से खाते ऊँठ को
डब डबाये आँखों से !!
© नवीन किशोर महतो
7 मई 2020
राँची ( झारखंड)
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