पथिक
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लौट आना गाँव
सुरक्षित होकर निरोग लौट आना
पत्नी पथ पखारे देखती है
राह लौटने का !!
छलकते आँसुओं की असहनीय पीड़ा
पोंछ लेती है साड़ी की चांवर से
अदहन देर से देती है,
भात गिला हो जाता !!
लेकिन फेंकती नहीं है
तुम लौट आना !!
जैसे लौट आता है
पंछी तूफानों से लड़कर
शाम होने तक अपना घोंसला !!
तुम भी लौट आना
करोना से बचकर घर अपना !!
तुम लौट आना
कुछ बैठे हैं
समाज के पहरेदार
जिनसे गाँव की बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं !!
गाँव के रक्षा की बात करते हैं !!
तुम देखोगे गाँव की तानाशाही
नलकूप में ताला लटका होगा !!
गाँव का रास्ता बंद मिलेगा
जो रोक लेगा राह तुम्हारी
उस सन्नाटे के गहरेपन में !!
अगर थक गए होगे !!
चलते चलते आराम कर लेना !!
© नवीन किशोर महतो
22 मार्च 2020
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