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जंगली लोग

जंगली मामूली लोग हैं
आग और पानी जैसा 
मगर सोचो तो 
इतिहास के पहियों को
आगे की ओर ठेलने वाले हैं 
इतिहास की क़िताबों में
इनका ज़िक्र नहीं है 
सोचो तो कितना अजीब है
जो जानवरों का रक्षा करते हैं !! 
जंगलों को बचाया करते हैं !! 
  अक्सर शहरी लोग 
जंगली कहकर पुकारते हैं !! 
"जंगली " शब्द का अर्थ व्यंग्यात्मक है !! 
इनकी भाषा समझ से परे है 
जिसका व्याकरण, शब्दकोश
  लिखा नहीं गया 
शिक्षित लोगों से !! 
तुमसे चिढ़ है ! 
क्योंकि तुम्हारे वेशभूषा में 
तस्कर जंगल आया करते हैं !!

©नवीन किशोर महतो 
फरवरी 2/2/2020

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कोरसोंग

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कहानी हमारे भीतर होती है |

कुछ रास्ते ऐसे होते हैं, जिन पर पैदल चलना अच्छा लगता है, मुझे लगता है, रास्ता हमेशा चलने के लिए बनाया जाता है l सड़क कभी खत्म नहीं होते उनके साथ जुड़ते जाते हैं, कई छोटे छोटे सड़क !! खासकर उन लोगों को जिन्हें लिखना पसंद है, कहानी के अंत में बैठ कर सुस्ताना सड़क हो जाने जैसा है l मुझे किसी भी सड़क का अंत नहीं दिखता, मैं हर तरफ चलने लगता हूँ, और एक नया सड़क बनकर तैयार हो जाता है l जब मैं सड़क पार करता हूँ, रुक कर जिंदगी के रफ्तार को गाड़ियों में देखता हुँ l मुझे समझ नहीं आता, लोग भाग रहे हैं या फिर गाड़ी !! सड़क पार करना अपने अतीत से दुर भागना या अतीत को रास्ता दिखाने जैसा होता है l ताकि अपना अतीत किसी दूसरे व्यक्ति के साथ चिपक कर निकल जाए l कई कहानी बीच रास्ते में दम तोड़ लेती है , जिन्हें सुरक्षित घर पहुँचना था l मैं पैदल चलते हुए उन सभी कहानियों को अपने साथ लेकर चल रहा हूँ l "सड़क के अंतिम छोर में मेरी सभी कहानियाँ कविताओं में बदल जाएगी अपने अतीत का परछाई पानी में साफ साफ दिखता है l पानी का कोई रंग नहीं होता लेकिन बिता कल गहरा रंग छोड़ता है l कैसे एक वक्त का पत्त

पहाड़ी गीत

 पहाड़ी गीत  __________________________________________ ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!.  जब बर्फ पेड़ों पर सिमटती है   सर्द हवाएँ रोंगटे खड़ी करती है   नदी की धाराएँ जब जम जाती है !!   ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!   छोटे कद का पहाड़ी  भेड़ों को सुनाता है, अपना गीत तुम पत्थर चरना भी सीख लो हरी हरी घास हमेशा नहीं रहेंगी !! खोज लो पहाड़ पर शिलाजीत बंदरों के जैसे !!  ताकि भुख निगल न जाए    जो ठंड से बचाते आया है  अफसोस भुख भी बचा पाता  मैं सुना रहा हुँ !!  आखिरी गीत इस पहाड़ पर   फिर हरी घास उगे न उगे !!   भुख का ग्रहण गहरा रहा है   जाने किस दिन पहाड़ ग्रास कर जाए  फिर तुम रहोगे न मैं रहूँगा !!  बचा रहेगा ये पथरीली सड़क  जो कभी पहाड़ हुआ करता था !!  मेरे पहाड़ी गीत  जो तुम्हारे ऊनी बालों के साथ  उड़ता रहेगा सर्द हवाओं में  तब मुझे दोष मत देना  इससे पहले कुछ बताया नहीं  शायद सुनने और सुनाने के लिए  मैं भी न रहूँ !!  तुम भी न रहो !!  ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!. © नवीन किशोर महतो      2 जनवरी 2021