कभी कभी
सोचता है मन
ऐसे ही मुस्कराता भी है, वो पल कैसा होगा ??
जब हम कभी फिर आमने सामने होंगे !
कभी मिले तो तुमसे वो पल कैसा होगा, क्या तुम मुझे देखकर मुस्करा दोगी, या नज़रें फ़ेर लोगी l
मैं तो शायद, कुछ कह भी न पाऊँ,
खुद में ही सिमट जाऊँगा, जब तुम सामने आओगे l
इतना तो यकीन है, आँखें भर आयेंगी मेरी !
जो बातें कहनी थी शायद न कह पाऊँ, पर तुम समझ लेना, थोड़ा पास आकर दुर कर देना, दुनिया की तरह मतलबी मत निकलना l
इस दिमाग को भी अपने मन से मिलने का मन करता है l
वो सुबह शाम जो तेरे ही ख़्यालों में डुबा रहता था,
इसे फिर से डूबने का मन करेगा, लेकिन डुबने जरूर देना
दो आत्मायें जो उन गलियों से होते हुए मंदिर की सीढ़ियों तक जाती है l
वहीं बैठकर बातें करेंगे, ईश्वर का दर्शन करेंगे आंखें मिलाकर, झुकाकर नहीं l
क्योंकि नजरें शर्मिन्दगी में झुकाई जाती है, और तुम तो हिम्मत हो मेरी, जिन्दगी के सफर में एक अदृश्य सलाहकार, एक संगिनी, जो मुझे अच्छाई ओर बुराई का फर्क़ दिखाती रहती है l
परंतु उस समय मेरी आंखें सिर्फ तुम्हें ही देखेगी धुंधली यादों के साथ एक दो बूँद आँसुओं के लुढ़क भी जाए !
लेकिन पीठ पीछे कर पोंछ लूँगा, परंतु मेरे मन में तुम्हारे प्रति उतना ही विश्वास रहेगा, हाँ ये कहते समय मेरे अन्दर दर्द का सैलाब टुट जाए l
परन्तु मैं मुस्कान की चादर ओढ़े, छिपा लूँगा, अपने दर्द सारे,,,,,,,,
लिपट कर रो न पाऊँगा, तुमसे
क्या मुमकिन है, ऐसी मुलाकात यहाँ फिर से
तो मैं देखूँगा, मेरे बचपन का विश्वास जीतता है !!
या फिर ???
सोचता है मन
ऐसे ही मुस्कराता भी है, वो पल कैसा होगा ??
जब हम कभी फिर आमने सामने होंगे !
कभी मिले तो तुमसे वो पल कैसा होगा, क्या तुम मुझे देखकर मुस्करा दोगी, या नज़रें फ़ेर लोगी l
मैं तो शायद, कुछ कह भी न पाऊँ,
खुद में ही सिमट जाऊँगा, जब तुम सामने आओगे l
इतना तो यकीन है, आँखें भर आयेंगी मेरी !
जो बातें कहनी थी शायद न कह पाऊँ, पर तुम समझ लेना, थोड़ा पास आकर दुर कर देना, दुनिया की तरह मतलबी मत निकलना l
इस दिमाग को भी अपने मन से मिलने का मन करता है l
वो सुबह शाम जो तेरे ही ख़्यालों में डुबा रहता था,
इसे फिर से डूबने का मन करेगा, लेकिन डुबने जरूर देना
दो आत्मायें जो उन गलियों से होते हुए मंदिर की सीढ़ियों तक जाती है l
वहीं बैठकर बातें करेंगे, ईश्वर का दर्शन करेंगे आंखें मिलाकर, झुकाकर नहीं l
क्योंकि नजरें शर्मिन्दगी में झुकाई जाती है, और तुम तो हिम्मत हो मेरी, जिन्दगी के सफर में एक अदृश्य सलाहकार, एक संगिनी, जो मुझे अच्छाई ओर बुराई का फर्क़ दिखाती रहती है l
परंतु उस समय मेरी आंखें सिर्फ तुम्हें ही देखेगी धुंधली यादों के साथ एक दो बूँद आँसुओं के लुढ़क भी जाए !
लेकिन पीठ पीछे कर पोंछ लूँगा, परंतु मेरे मन में तुम्हारे प्रति उतना ही विश्वास रहेगा, हाँ ये कहते समय मेरे अन्दर दर्द का सैलाब टुट जाए l
परन्तु मैं मुस्कान की चादर ओढ़े, छिपा लूँगा, अपने दर्द सारे,,,,,,,,
लिपट कर रो न पाऊँगा, तुमसे
क्या मुमकिन है, ऐसी मुलाकात यहाँ फिर से
तो मैं देखूँगा, मेरे बचपन का विश्वास जीतता है !!
या फिर ???
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