तो फिर चलते हैं ,तुम और मैं !!
जब शाम आकाश पर फैली हो चलते हैं,
किसी आधी विरान सी गलियों में
जहाँ रास्ता तुम तक जाती है !!
गलियाँ जो पीछा करती है
अब उन्हीं रास्तों में मेरा
हज़ारों सवालों के साथ ? विचलित कर जाती है
हर एक सवाल ??
ओर गुलाबी धुप जो मेरे पीठ पर पड़ती है !!
मैं सहज ही मंद मुस्कान की चादर से ढक लेता हुँ
वेदना का अथाह समंदर !!
सूरज सुन्दर लाल रंग में डुब रहा है !!
मुझे पता है, उन सवालों के जवाब
को मेरे अंतर्मन में रुंद गई है r /> ओर अब उन रास्तों पर अकेले धीरे धीरे चल रहा हुँ !!
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