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वो कौन थी l

ख्याल आते ही, ओर एक ख्याल आया है! सालों से दबी दबी, यादों का एक तूफान आया है! आखिरकार कुछ दिन से उसका इस तरह का बदलाव मुझे सोचने पर मजबूर कर देता था मैंने उसे कितना समझाया ये प्यार व्यार कुछ नहीं होता ये बुखार दो दिन बाद उतर जाता है , हाँ भले किसी किसी का कुछ महीने या फिर बोलो साल तक टिकता हो , मैंने उसे ये भी कहा इस तरह मत रहा करो यार लेकिन वो मेरी कहाँ सुनने वाला था, बीच में टोकते हुए. अबे ऐसे क्यों देखते हो, कोई बिगड़ैल अमीर नहीं हुँ मैं मुझे उससे बहुत शिकायत थी, मैंने तो उसे कह दिया, भैया तुम्हारी आँखें तो बहुत कुछ कहती है, मुझे अभी भी याद है उसका वो दिन प्यार के दिन थे, प्यार का मॉनसून, प्यार की रातें, प्यार की जनवरी, प्यार की सर्दियाँ, यार, कभी कभी लगता था, सर्दियाँ बस आशिकों के लिए बनी है. घंटों गुटूर गुटूर बालकनी के कोनें में किया करता था, है ना अजीब सा मजेदार सा जिन्दगी उसका दो महीना हो गया उसका इसका क्या मतलब है यार, वो बीच बीच में पूछा करता था. जब विश्वास ही न रहे तो रिश्ते बनाए रखने का कोई फायदा नहीं है, उन्हें तोड़ना ही बेहतर है तो हम कब से बात करना बंद कर रहे हैं,और कब से मिलना ?? मोबाइल में बात करते उसके आवाज को सुन रहा था! अब शांत था, शायद जवाब का इंतजार कर रहा हो, उस सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा... टूटे दिल आशिकों को तकलीफ अच्छी लगती है, देवदास के चेले, मैं हँस के कहता ! डायरी मेरे हाथ में देते हुए कहा तु लिख मेरे भाई तु नहीं समझेगा,देख मेरा दिमाग ऐसे ही कचरा हो गया है, भगवान करे कि अगली बार तेरे मुँह पर फेविकल लगा दे, ताकि तु बकवास न कर पाए इस तरह झल्लाने का वजह मैं समझ सकता था मुझे पता था, वो अंदर से टूट चुका है मैं बस मुस्कुराते हुए कहता देवदास के चेले... मुझे नहीं पता वो लड़की कौन थी.
©® नवीन किशोर महतो

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 पहाड़ी गीत  __________________________________________ ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!.  जब बर्फ पेड़ों पर सिमटती है   सर्द हवाएँ रोंगटे खड़ी करती है   नदी की धाराएँ जब जम जाती है !!   ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!   छोटे कद का पहाड़ी  भेड़ों को सुनाता है, अपना गीत तुम पत्थर चरना भी सीख लो हरी हरी घास हमेशा नहीं रहेंगी !! खोज लो पहाड़ पर शिलाजीत बंदरों के जैसे !!  ताकि भुख निगल न जाए    जो ठंड से बचाते आया है  अफसोस भुख भी बचा पाता  मैं सुना रहा हुँ !!  आखिरी गीत इस पहाड़ पर   फिर हरी घास उगे न उगे !!   भुख का ग्रहण गहरा रहा है   जाने किस दिन पहाड़ ग्रास कर जाए  फिर तुम रहोगे न मैं रहूँगा !!  बचा रहेगा ये पथरीली सड़क  जो कभी पहाड़ हुआ करता था !!  मेरे पहाड़ी गीत  जो तुम्हारे ऊनी बालों के साथ  उड़ता रहेगा सर्द हवाओं में  तब मुझे दोष मत देना  इससे पहले कुछ बताया नहीं  शायद सुनने और सुनाने के लिए  मैं भी न रहूँ !!  तुम भी न रहो !!  ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!. © नवीन किशोर महतो      2 जनवरी 2021