मुझे अपने बचपन के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं l
मुझे याद है,
मेरी माँ मुझे बैठाकर बता रही थी, कि हर चीज़ का एक राज होता है l
पहले तो उसे मैं नहीं देख पाया था,
लेकिन फिर एक दिन मैंने देखा लोग अपने आस-पास के राज़ पर गौर नहीं करते,
जबकि वो ठीक उनके सामने होते हैं l
छुपकर ढूंढें जाने का इंतजार करते हैं,
सूरज उगने से पहले कितना सन्नाटा होता है l
इतनी सुबह मैं बाहर बैठता हुँ,
कुछ लिखता हुँ,
जैसे कहानियाँ, कविताएँ, बहुत आसान है l
पता नहीं मेरे ख्याल से शायद दिन के उस समय में जब सब सो रहे होते हैं l
मुझे याद है,
मेरी माँ मुझे बैठाकर बता रही थी, कि हर चीज़ का एक राज होता है l
पहले तो उसे मैं नहीं देख पाया था,
लेकिन फिर एक दिन मैंने देखा लोग अपने आस-पास के राज़ पर गौर नहीं करते,
जबकि वो ठीक उनके सामने होते हैं l
छुपकर ढूंढें जाने का इंतजार करते हैं,
सूरज उगने से पहले कितना सन्नाटा होता है l
इतनी सुबह मैं बाहर बैठता हुँ,
कुछ लिखता हुँ,
जैसे कहानियाँ, कविताएँ, बहुत आसान है l
पता नहीं मेरे ख्याल से शायद दिन के उस समय में जब सब सो रहे होते हैं l
तब मन में बहुत से अच्छे ख्याल आते हैं l
( मेरी डायरी के पन्नों से )
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