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ललकार

ललकार  ------------------------------------------------------------------- जंगली जानवर गाँव आ रहे हैं !!  कल सुना मैंने खुंखार भेड़िये आँगन में गुर्रा रहे थे !!  वर्षों पहले खिंची सीमा की लकीर तोड़  जंगली जानवर गाँव आ रहे हैं !!  झरना सुखी पड़ी है !!  जहाँ बाघ और हिरन एक घाट में पानी पिया करते थे !!  कल देखा मैंने  मुर्दा बन लटके चमगादड़ पेड़ों पर !!  आगे बढ़ा सुन ठक ठक की आवाज  सोचा कठफड़वे का दर्शन करता चलूँ !  देख रह गया स्तब्ध !!  कठफड़वे के शक़्ल में इंसान थे !!  आगे बढ़ा घने जंगल की ओर  कुछ आवाजें भयभीत कर रहीं थीं !!  खरगोश बैठे थे मौन व्रत लिए  सियार सभा को संबोधित कर रहे थे !!  जंगल का राजा सिंह नहीं दिखा  शायद चिड़ियाघर में कैद हो !!  हाथी सिंहासन पर बैठ चिंघाड़ रहे थे !!  शंख की ध्वनि बजती हो, जैसे रण में  भागा-भागा आया गाँव !!  सुनाई मैंने कथा वृतांत !!  लोग मेरी बातें सुन हँस रहे थे !!  कल सुना मैंने जंगली जानवर गाँव आ रहे हैं  !!   © नवीन किशोर महतो        3/12/ 2016   

पहाड़ी गीत

 पहाड़ी गीत  __________________________________________ ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!.  जब बर्फ पेड़ों पर सिमटती है   सर्द हवाएँ रोंगटे खड़ी करती है   नदी की धाराएँ जब जम जाती है !!   ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!   छोटे कद का पहाड़ी  भेड़ों को सुनाता है, अपना गीत तुम पत्थर चरना भी सीख लो हरी हरी घास हमेशा नहीं रहेंगी !! खोज लो पहाड़ पर शिलाजीत बंदरों के जैसे !!  ताकि भुख निगल न जाए    जो ठंड से बचाते आया है  अफसोस भुख भी बचा पाता  मैं सुना रहा हुँ !!  आखिरी गीत इस पहाड़ पर   फिर हरी घास उगे न उगे !!   भुख का ग्रहण गहरा रहा है   जाने किस दिन पहाड़ ग्रास कर जाए  फिर तुम रहोगे न मैं रहूँगा !!  बचा रहेगा ये पथरीली सड़क  जो कभी पहाड़ हुआ करता था !!  मेरे पहाड़ी गीत  जो तुम्हारे ऊनी बालों के साथ  उड़ता रहेगा सर्द हवाओं में  तब मुझे दोष मत देना  इससे पहले कुछ बताया नहीं  शायद सुनने और सुनाने के लिए  मैं भी न रहूँ !!  तुम भी न रहो !!  ऊँची चोटी पर बैठा  पहाड़ी गीत गाता है !!. © नवीन किशोर महतो      2 जनवरी 2021